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आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता 

वर्तमान दौर आतंकवाद का है। आतंकवाद के कारण कौमों के संबंध प्रभावित हुए हैं । दुनिया के कई मोर्चों पर दंगों के पीछे आतंकवाद है अगर इसकी रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया तो डर है कि दुनिया में ऐसे कई और मोर्चे खुल सकते हैं । विश्व मीडिया ने दहशतगर्दों को धार्मिक रंग देने की कोशिश के साथ साथ इसे एक विशिष्ठ क्षेत्र से जोड़ने की भी कोशिश की ।
यह मानते हुए कि इस विशिष्ट क्षेत्र के लोग इस्लाम के अनुयायी हैं । हालांकि आतंकवाद एक ऐसा काम है जो किसी मतलब से ताल्लुकात नहीं रखता । ऐसे प्रयासों से भी होशियार रहने की आवश्यकता है जिनका उद्देश्य आतंकवाद को इस्लाम और ईसाइयत के बीच जंग के संदर्भ में देखना है या उसे फसल की चादर उढा कर सभी सुननी आतंकवाद का नारा बुलंद किया जाता हो तो कभी शिया आतंकवाद का ।
हम ऐसी सभी शब्दों को अस्वीकार करते हैं जिनसे कौमों और धर्मौं  के बीच दुश्मनी पैदा होने का डर हो । क्योंकि अजहर के रूप में मुसलमानों की धार्मिक सत्ता ऐसे सभी अपराधों की निंदा करती है, जो किसी भी इंसान को हानि पहुंचाएं या किसी धर्म का अपमान करे। आतंकवाद के समर्थक गिरोह धर्मों का नेतृत्व नहीं करते हैं, आतंकवाद एक अपराधिक काम है जो न तो इसाई है और ना ही मुसलमान ।
इस्लाम की दृष्टि में निर्दोषों का कत्ल एक गंदा काम है चाहे यह बेगुनाह मुसलमान हो या न हों । इसी प्रकार आतंकवाद ही एक गंदा काम है चाहे करने वाले मुसलमान हो या ना हों। यह कार्य अत्याचार पर आधारित है जो स्वयं में गंदा है । अत्याचार के गंदे और कुरूप से हटकर आतंकवाद का कोई शीर्षक नहीं दिया जा सकता और इसको करने वाला निंदा का हकदार है ।

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