उबेदुल्लाह सिंधी जो पहली पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी थे, का जन्म 10 मार्च,1872 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ। इन्होंने हिंदुस्तान की आजादी के लिए विभिन्न मुस्लिम देशों का समर्थन प्राप्त करने हेतु एक अभियान चलाया जिसे ‘रेशमी रुमाल षडयंत्र’ का नाम दिया गया। वो जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के आजीवन सदस्य रहे जिन्होंने बड़ी ही मामूली पगार पर नौकरी की। इनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए यहां स्थित लड़कों के एक हॉस्टल का नाम भी इनके ऊपर रखा गया।
उबेदुल्लाह ‘देवबंदी विचारधारा’ के मानने वाले थे और मौलाना महमूद-अल-हसन तथा मौलाना रशीद अहमद गंगोही के नजदीकी थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक आंदोलन चलाया। सिंधी इस सिलसिले में अफगानिस्तान भी गए जहां अमीर हबीबुल्लाह के राजमहल में क्रांतिकारियों की निर्वासित सरकार का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष राजा महेंद्र प्रताप सिंह को बनाया गया और सिंधी उसके मंत्री नियुक्त किए गए। इस सरकार का उदेृश्य भारत को अंग्रेजी हुकूमत से भारतीयों,अफगानियों, तुर्कियों और जर्मन लोगों के सहयोग से निजात दिलाना था।
उन्होंने इस्तानबुल (तुर्की) से ‘भारत की स्वतंत्रता का चार्टर’ भी जारी किया। उबेदुल्लाह ने ‘जमीयत-उल-अंसार’ संगठन की सहायता से छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने का काम भी किया जो अंग्रेजो के खिलाफ छदम रूप से प्रचार करने का कार्य करता था। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया के जनजातीय इलाकों में सुधार लाने के लिए भरपूर कार्य किया और इसे ‘मुसलमानों के लिए जेहाद’ का नाम दिया।