गुरूग्राम में नेशनल हाइवे नंबर- 8 से सटी प्राइम लोकेशन की 13 एकड़ जमीन को रास्ता देने का मामला
जेजेपी के नेता और हिसार से सांसद दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा की सरकार पर और खासकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर बड़ा आरोप लगाया है। दुष्यंत ने कहा कि गुरूग्राम के सेक्टर-16 में एक निजी बिल्डर की जमीन है जिसकी शुरूआती डिजाइन और प्लानिंग में रास्ता एक लोकल रोड़ से होते हुए था। बिल्डर की जमीन और नेशनल हाइवे के बीच हुडा की ग्रीन बेल्ट है। बिल्डर ने पहले ग्रीन बेल्ट के पास से होते हुए एक अन्य सड़क तक रास्ता मांगा जो सड़क नेशनल हाइवे में मिलती है। लेकिन राज्य सरकार ने कमाल की दरियादिली दिखाते हुए बिल्डर को ग्रीन बेल्ट के बीचों बीच सीधा रास्ता बनाकर दे दिया। बिल्डर की जमीन का नेशनल हाइवे के लिए जो रास्ता लगभग 2 किलोमीटर का था, वो घटकर 200 मीटर रह गया। और इस नए रास्ते का इस्तेमाल सिर्फ बिल्डर की जमीन पर जाने के लिए ही होगा क्योंकि इसे जमीन पर ले जाकर खत्म कर दिया गया है। दुष्यंत ने कहा कि इस पूरे काम में दो गलत काम किए गए और दोनों की ही पुष्टि सरकारी रिकॉर्ड, आरटीआई और CAG-2017 की रिपोर्ट से होती है।
दुष्यंत के मुताबिक पहला गलत काम ये कि सरकार ने नेशनल हाइवे अथॉरिटी से रास्ते की इजाज़त पब्लिक इंटरेस्ट के नाम पर खुद ली। HUDA के अधिकारियों ने खुद चिट्ठी लिखकर अपने लिए इजाज़त ली, ना कि बिल्डर के नाम से। NHAI से बिल्डर खुद इजाज़त लेता तो काफी मुश्किल काम था और शायद मिलती ही नहीं। साथ ही नेशनल हाइवे अथॉरिटी के नियमों का भी पालन करना पड़ता। आरटीआई से मिली जानकारी में साफ लिखा है कि हरियाणा सरकार ने हुडा विभाग के Executive Engineer, Division -3, Gurgaon के जरिए ये इजाज़त हासिल की। ये सरकार के स्तर पर अनैतिक काम है और इससे बिल्डर की जमीन की कीमत कई गुणा बढ़ गई। जो प्रोजेक्ट लगभग 500 करोड़ का था, वो 1500 करोड़ का हो गया।
दुष्यंत ने कहा कि दूसरा गलत काम ये किया गया कि बिल्डर की जमीन के लिए जो रास्ता दिया गया, उसकी जमीन के बदले बिल्डर से ना कोई जमीन ली गई, ना ही कोई कीमत ली गई। नियम के अनुसार जितनी जमीन रास्ते में दी गई, उससे डेढ़ गुणा जमीन बिल्डर से ली जानी चाहिए थी। CAG -2017 की रिपोर्ट में पेज 106 पर यह साफ लिखा गया है कि जमीन के बदले जमीन ना लेकर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया गया। कुल 4930 वर्ग मीटर जमीन दी गई जिसके बदले लगभग 7500 वर्ग मीटर जमीन ली जानी चाहिए थी। जिस जगह यह प्रोजेक्ट है, वहां जमीन की मार्केट वैल्यू लगभग ढाई लाख रुपये वर्ग मीटर है। इस हिसाब से लगभग 160 करोड़ रुपये कीमत की जमीन बिल्डर से ली जानी चाहिए थी जो नहीं ली गई। कुल मिलाकर बिल्डर को लगभग 1000 करोड़ रुपये का फायदा इस प्रक्रिया में पहुंचाया गया। विशेष बात ये है कि प्रोजेक्ट की फाइल पर मंजूरी खुद मुख्यमंत्री ने साल 2015 में दी थी। बाकायदा दो जगह मुख्यमंत्री के नाम से फाइल को seen करने और approve करने की नोटिंग है। और 2017 की CAG की रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि सरकार ने जमीन के बदले जमीन ना लेकर घोटाला किया।
दुष्यंत ने कहा कि हुड्डा सरकार में रॉबर्ड वाड्रा ने 5 करोड़ में जमीन खरीदी, सरकार ने उसका CLU किया और वाड्रा ने वो जमीन डीएलएफ को 55 करोड़ में बेच दी। यानी सरकार ने सुविधा देकर जमीन की कीमत दस गुणा बढ़ा दी। वैसे ही इस मामले में भी हाइवे से रास्ता मिल जाने के बाद जमीन को एक बड़े बिल्डर ने खरीद लिया है। इससे यह तय हो जाता है कि सरकार की मदद से जमीन की हाइवे से रास्ते की सुविधा दिलवा दी गई और फिर उसे बड़े बिल्डर को बेच दिया गया। निजी बिल्डर ने नया रास्ता बनाने के लिए तोड़े गए स्टाफ क्वार्टर्स और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को दूसरी जगह बनाए जाने पर हुए खर्च के पैसे सरकार को जमा करवाए। इससे यह स्थापित होता है कि रास्ता बिल्डर के फायदे के लिए बनाया गया। बस गलत यह रहा कि एक तो सरकारी जमीन के बदले बिल्डर से जमीन या हर्जाना नहीं लिया गया, और दूसरा ये कि NHAI से रास्ते की इजाज़त HUDA विभाग ने जनहित के नाम पर ली, ना कि बिल्डर ने खुद, या हुडा विभाग ने बिल्डर के नाम पर।
अब देखना होगा कि दुष्यंत के इन आरोपों पर हरियाणा की खट्टर सरकार क्या जवाब देती है। दुष्यंत ने कहा कि उनके समर्थन में जो विधायक हैं वो इस बारे में आगामी विधानसभा में सरकार से सवाल करेंगे। वहीं इस पर सरकार की ओर से क्या कहा जाता है अब उस पर नजर रहेगी।