जय जवान और जय किसान का नारा तो हमारे देश में बहुत दिया जाता है लेकिन हमारे देश में जवान और किसान की हालत क्या है ये भी हर कोई जानता है। पुलवामा में आत्मघाती हमले के बाद देश मे हर कोई गुस्से में है। हर कोई चाहता है कि बदला लिया जाना चाहिये। इतनी बड़ी तादाद में जवानों की शहादत कई सवाल खड़े करती है। हर कोई बदले की तो बात कर रहा है लेकिन क्या कोई शहीदों के परिवारों का जिम्मा उठाने की बात कर रहा है। उनके परिवारों को सहायता देने की बात कर रहा है।
अगर शहीदों के परिवारों की हालत जाकर देखी जाये तो पता चलेगा कि जवान के शहीद होने के बाद वो परिवार कैसे गुजारा करेगा, कैसे बच्चों की जरूरते पूरी होंगी। ये दर्द सिर्फ शहीद का परिवार ही महसूस कर सकता है। इस मसले पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ठीक कदम उठाया था। दिल्ली की केजरीवाल सरकार अगर शहीद के परिवार को 1 करोड़ रूपया दे सकती है तो बाकि राज्यों की सरकारें क्यों नहीं। क्या उनके पास पैसा नहीं है या नियत नहीं है।
सोचने वाली बात……..
एक सवाल और बड़ा है जब कोई खिलाड़ी बाहर से मैडल जीत कर लाता है तो सरकारें उसके आगे पीछे मंडराती हैं। उसको करोड़ों रूपया तो सरकार देती है, इसके अलावा दूसरी संस्थाएं भी काफी पैसा देती हैं। करोड़ों रूपये के अलावा अच्छी नौकरी दी जाती है। इसके अलावा उस खिलाड़ी को करोड़ों रूपये का एड-कैंपेन भी मिलता है। वहीं देश की रक्षा करने वाले जवान की शहीदी पर सरकारें ऐसा क्यों नहीं सोचती।
दरअसल होता क्या है। जब कोई जवान शहीद होता है तो 2 दिन की देशभक्ति राजनीतिक पार्टीयां और मीडिया दिखाता है, उसके बाद भूल जाते हैं। शहीद के परिवार का दर्द बांटा तो नहीं जा सकता हां उनकी आने वाली जिंदगी के लिये सहायता जरूर की जा सकती है। ‘द मसला’ की ओर से अपील सभी सरकारों से है कि देश पर मर मिटने वाले जवान की शहादत पर सरकारों को सोचना चाहिेये और दिल्ली सरकार की तरह कम से कम 1 करोड़ रूपया शहीद के परिवार को दिया जाना चाहिये ताकि शहीद के परिवार की देखभाल ठीक से हो सके।