जींद विधानसभा की सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल की है। यहां से इनेलो के विधायक हरिचंद मिढ़ा का देहांत हो गया था। उसके बाद बीजेपी ने देखा कि यहां उपचुनाव होगा तो पार्टी ने जीत हासिल करने के लिये रणनीति शुरू कर दी। हरिचंद मिढ़ा के बेटे कृष्ण मिढ़ा को बीजेपी में शामिल करवाया। हालांकि विपक्षी पार्टियों के मुताबिक बीजेपी पहले इस चुनाव को टाल रही थी लेकिन जब कोर्ट की ओर से कहा गया कि चुनाव करवाया जाये तो बीजेपी ने जींद का सर्वे करवाना शुरू किया। उसके बाद बीजेपी को लगा कि कृष्ण मिढ़ा पर दाव लगाना महंगा भी पड़ सकता है तो मांगेराम गुप्ता से भी गुपचुप तरीके से बातचीत हुई और एक समय तो ऐसा आया कि जब ये ख़बर आई कि गुप्ता दिल्ली में पार्टी में शामिल होने के लिये चल दिये हैं। फिर ख़बर आई कि गुप्ता अपने लिये नहीं अपने बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते थे। जिस पर बीजेपी राजी नहीं थी तो बात नहीं बनी।
बीजेपी के पास दो-तीन और उम्मीदवार थे जो चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन बीजेपी ने आखिर में चुना कृष्ण मिढ़ा को। जिसके बाद तीन और जो उम्मीदवारी की रेस में थे वो नाराज हो गये। उनमें प्रमुख थे सुरेंद्र बरवाला जो कि पिछला चुनाव भी लड़े थे और बहुत कम वोटों से हारे थे। वहीं दूसरे थे टेकराम कंडेला जो कि थोड़े दिन पहले ही पार्टी में शामिल हुये थे और उनके अनुसार टिकट को लेकर ही उन्हें पार्टी में शामिल करवाया गया था। एक और थे जवाहर सैनी। ये सब नाराज थे लेकिन आखिरकार इन तीनों को बीजेपी ने मना लिया।
कृष्ण मिढ़ा के पिता जो कि एक विधायक होने के साथ – साथ डॉक्टर भी थे और क्लीनिक भी चलाते थे। कहा जाता है कि वो समाजसेवी भी थे। कृष्ण मिढ़ा खुद भी उस क्लीनिक पर बैठते हैं। लोगों के साथ इनका रोज का वासता रहता है। जिसका फायदा बीजेपी को मिला और हरियाणा की राजनीति की राजधानी कहे जाने वाले जींद से पार्टी को पहली बार जीत हासिल हुई।
जींद के इस उपचुनाव से चुने गये नये विधायक हालांकि कुछ समय के लिये ही चुने गये हैं। करीब दो महीने बाद लोकसभा के चुनाव हैं अगर लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव हुये तो नये विधायक साहब सिर्फ दो महीने के लिये ही विधायक रहेंगे। अगर विधानसभा के चुनाव लेट हुये तो फिर नये विधायक 6-7 महीने लिये यहां की नुमाइंदगी करेंगे।