सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपनी जान देकर पत्रकारिता पर लोगों का भरोसा कायम रखा । कहते हैं ना कि कलम की मार तलवार की मार से भी ज्यादा होती है। रामचंद्र छत्रपति हत्या में फैसला सुनाते हुए जज जगदीप सिंह ने कहा कि ‘पत्रकारिता एक गंभीर व्यापार है, जो सच्चाई को रिपोर्ट करने की इच्छा को सुलगाता है। किसी भी ईमानदार और समर्पित पत्रकार के लिए सच को रिपोर्ट करना बेहद मुश्किल काम है। खास तौर पर किसी ऐसे असरदार व्यक्ति के खिलाफ लिखना और भी कठिन हो जाता है जब उसे किसी राजनीतिक पार्टी से ऊपर उठकर राजनीतिक संरक्षण हासिल हो। मौजूदा मामले में भी यही हुआ। एक ईमानदार पत्रकार ने प्रभावशाली डेरा मुखी और उसकी गतिविधियों के बारे में लिखा और जान दे दी। डेमोक्रेसी के पिलर को इस तरह मिटाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।’
जज जगदीप सिंह ने लिखा कि ‘पत्रकारिता की नौकरी में चकाचौंध तो है, लेकिन कोई बड़ा इनाम पाने की गुंजाइश नहीं है। पारंपरिक अंदाज में इसे समाज के प्रति सेवा का सच्चा भाव भी कहा जा सकता है। ये भी देखने में आया है कि पत्रकार को ऑफर किया जाता है कि वो प्रभाव में आकर काम करे नहीं तो अपने लिये सजा चुन ले। जो प्रभाव में नहीं आते उन्हें इसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं, जो कभी – कभी जान से भी हाथ धोकर चुकाने पड़ते हैं। इसलिये ये अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई है। इस मामले में भी यही हुआ है कि एक ईमानदार पत्रकार ने प्रभावशाली डेरा मुखी और उसकी गतिविधियों के बारे में लिखा और जान दे दी।’
‘द मसला’ इस फैसले पर यही कहना चाहेगा कि अगर राजनीति और अफसरशाही पीड़ित परिवार यानि छत्रपति परिवार की सहायता करता , रोड़ा ना बनता तो फैसला और जल्द आ सकता था और डेरा मुखी को ये शह ना मिलती कि वो और भी अपराध कर पाता। खैर देर से ही सही लेकिन इस फैसले से पत्रकारिता जगत में नया जोश आया है और एक पत्रकार को समाज तक सच पहुंचाने के लिये किसी से डरने की जरूरत नहीं है। इस फैसले से उन राजनीतिज्ञों को भी सबक मिला है जो प्रभावशाली लोगों के आगे घुटने टेक देते हैं और सच का साथ नहीं देते।